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Monday, March 2, 2009

बेटी - क्यों ऐसा मेरे साथ किया

बेटी - क्यों ऐसा मेरे साथ किया
चुप चुप सब मैं सुनती थी
माँ के पेट के भीतर से
दादी हरदम क्यों कहती थी ?
‘बेटा ’ दे अब ‘बेटा ’ दे ।
बहन मेरी प्यारी सी
'छोटी बहन दो माँ ' , ये कहती थी
माँ जोर का चांटा जड़ती थी
फिर रो रो कर ये कहती थी
‘मांग तू एक भाई अब
बेटी का जीवन कठिन बहुत । '
दादी भी बेटा मांगे , बापू भी बेटा मांगे
माँ भी मेरी हरदम ही भगवन से बेटा मांगे ।
फिर भी मैंने सोच लिया ,
सब का मन मैं हर लूंगी
अपनी नटखट बातों से
सबको खुश मैं कर दूंगी ।
पर मुझको इतना वक़्त न दिया
मेरे बापू ने ऐसा पाप किया
कर मालूम मैं लड़की थी
मुझको पेट में ही मार दिया ।
फूलों की खुशबू ले न सकी
जीवन का स्वाद मैं चख न सकी
माँ को माँ मैं कह न सकी
बहन से अपनी मिल न सकी
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
जीवन का सुंदर ख्वाब दिया
फिर मौत की आग में झोंक दिया
बेटी बन मैंने क्या कोई पाप किया ?
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?

Friday, February 27, 2009

झुमका

झुमका


मेरी संगनी मुझसे है जुदा जुदा

चेहरे के एक ओर है वो , दूसरी ओर हूँ मैं लटका

एक झलक भी उसकी देख पाऊ मैं
बहुत हूँ बेचैन … बहुत हूँ तड़पा

सखियों ने छू छू कर देखा तुझे

कितनी है सुंदर ये झुमकी , बोला तुझे

तूफान मेरे अन्दर था उठा

एक झलक मैं भी देखू तेरी , मन था मेरा

इन झुल्फों में उलझ कर अपने आप को मैं

ज़मीन पे ला गिराना चाहता हूँ

टूट ही जाऊँ चाहे गिरकर मैं

तेरी एक झलक पाना चाहता हूँ

मैं कामयाब हुआ गिरकर झलक पाने को तेरी

कितनी सुंदर तू लगती कानों में लटकी लटकी

पर मेरे गिरने का मोहतरमा को कुछ अहसास हुआ

तू झूलती हुई उसके कानों में
उसके साथ आगे निकलती गयी

और मेरी आत्मा ......

टूटी सी ज़मीन पर पड़ी रह गयी।
रोंदा कितने कदमों ने मुझको

अपनी चमक खोता मैं गया

तू कानों मैं सजी झूमती रही

मैं वहीँ पड़ा तुझे ...

दूर जाता देखता रह गया

Wednesday, February 25, 2009

सौदा

करे सौदा इस जहाँ का हम तुम
आसमान तुम्हारा , ज़मीन हमारी
फूल तुम्हारे , खुशबू हमारी
सितारे तुम्हारे , झिलमिलाहट हमारी
चाँद तुम्हारा , चांदनी हमारी
सूरज तुम्हारा , रौशनी हमारी
सागर तुम्हारा , लहरें हमारी
पंछी तुम्हारे , उड़ान हमारी
बादल तुम्हारे , गर्जन हमारी
खुशियाँ तुम्हारी , दुःख दर्द हमारे
सब कुछ तुम्हारा , तुम हमारे

Friday, February 20, 2009

मन का घोड़ा

मन का घोड़ा तेज़ बोहोत

बिन सोचे ही उड़ जाता है

लहर लहर लहराता है

हो मस्त ख़ुद पे इतराता है ।

बचो इससे , है नासमझ बोहोत

दौड़ दौड़ रुक जाता है

नशेडी से कदम बढाता है

मनो नृत्य कोई दिखलाता है ।


मन के घोडे की एक लगाम

ज़ोर से अब तुम लो थाम

काबू में गर रखना हो इसे

ढील देने में लो दिमाग से काम ।

Friday, February 13, 2009

पानी की ये बूँद

पानी की ये बूँद अगर
सागर से मिले तो अमर बने
अपना अस्तित्व पर खो बैठे ।
पत्ते पे अगर ये जा गिरे
सूरज की किरण से दमक उठे
पर कुछ पल में ही सूख मरे ।
पानी
की ये बूँद अब क्या करे
खो बैठे अपने अस्तित्व को ये
या पत्ते पर दमक कर मर मिटे ?
अमर
रही गुमराह सही , सागर में बेनाम सही
जीती तो रही पर आम सही , क्या ऐसा जीवन ही है सही ?
पत्ते
पे रही अकेली सही , हिम्मत की पोटली भारी रही
कुछ पल दमक कर मर वो गई , क्या ऐसा जीवन ही है सही ?
गर
हर बूंद ये सोच उठे , सागर से मिल हो अमर बनू
सागार तो भर भर जाएगा , पर इधर सूखा पड़ जाएगा ।
गर हर बूंद ये सोच उठे दमक दमक मैं चमक उठू
अकेले बैठ इस पत्ते पे , मैं रानी बन यूं राज करू
सागर खली हो जाएगा , पत्ता पेड़ समेत दूब जाएगा ।
कोई
तो दे इस बूँद को राह सही
जो ख़त्म हो इसके सवाल सभी
मैं तो कुछ भी न सूझा पायी
ख़ुद अबतक राह तलाश रही ।

Thursday, February 12, 2009

रूह से जान पहचान

मौत से इतनी नफरत न होती , गर जो ये आने वाली न होती
पर ज़िन्दगी क्या इतनी खूबसूरत होती, गर जो ये जाने वाली न होती।
ज़िन्दगी को नाम ज़िन्दगी बनाया है मौत नें
गर मौत ही न होती, तो जिंदगी क्या खाक ज़िन्दगी होती।
ख़त्म हो जाने की मन्नत तू करता ,
गर उमर इतनी लम्बी जो होती
मौत चंद किस्मत वालों को मिलती,
और ज़मीन पे ज़िन्दगी की कदर न होती।
मौत ने जान डाली है इसमे,
गर ये ना आती , तो वो इतनी हसीन न होती।
मौत तो है जिस्म ख़त्म करती, रूह तेरी यहीं पर होती
गर जिस्म ही ख़त्म होते , तो ये ज़मीन छोटी पड़ रही होती
जिस्म तो हर पल है मर रहा, जान तो रूह में हमेशा है होती,
काम ले जिस्म से , पर दोस्ती तो रूह से है होती
सोचेगा तब जब देर हो चुकी होगी
के काश मेरी रूह से मेरी जान पहचान होती

Wednesday, February 11, 2009

तेरी माया

खिचता हूँ ओर तेरे
किधर भी मैं चला जाऊं
तेरा जादू हर तरफ़ है फैला
ख़ुद को शिकार इसका मैं पायूँ ।

दी तो तुने जिन्दगी बड़ी खूब मुझको
गमों के सागर में हिचकोले मैं खाऊं ,
पर डूबे जब मझधार में नैय्या मेरी
तुझसे कर गुजारिश सलामत पार लग्वायूं ।

वक़्त बना ही फिसलने को है
रोकना तोह इसको बोहोत मैं चाहूँ
काफ़ी कबड्डी खेल ली वक़्त से मैंने
पर हरदम मैं हारता ही जाऊं ।

माया कैसी रच दी है ये तुमने
जिसकी गिरफ्त से ना मैं बच पायु
माटी से बनाया है तुमने मुझको
अब माटी में ही समाता मैं जाऊं ।

Sunday, February 8, 2009

आज़ाद गुलाम



खुले आसमान के नीचे हूँ मैं

अपनी मर्जी का मालिक हूँ मैं

दिल जो चाहे करता हूँ मैं

खुश हूँ की आज़ाद हूँ मैं।

सुबह से लेकर शाम तक

काम के बोझ से घायल हूँ मैं

वक़्त ने ऐसा दौडाया है मुझे

पर खुश हु मैं आज़ाद हूँ मैं ।

गर ये रिश्तों के बंधे धागे

और ये काम ज़िम्मेदारी के नाते

कितनो से किए ये कसमे ये वादे

कितने मुनाफे और कितने घाटे

ये सब अगर ज़ंजीर नहीं हैं

गुलाम बनाये बैठी नहीं हैं

हर ओर से मुझको जकडे नहीं हैं

तो सही है शायद आज़ाद हूँ मैं

खुश हूँ मैं आज़ाद हूँ मैं।

Wednesday, February 4, 2009

मोर पंख

राधा जी भगवान् श्री कृष्ण के मोर पंख को अपने पास रखती है। उसको देख देख कर भगवान् श्री कृष्ण को याद करती रहती है। यह राधा जी की कलाकृति मैंने कुछ समय पहले बनायी थी, लेकिन यह कविता आज ही मन में आई। यह राधा जी की तरफ़ से है।
मुझको नहीं , मेरी आँखों को है ,
मुझको नहीं , मेरी साँसों को है ,
इंतज़ार तुम्हारा ये हर पल का
मुझको नही मेरे दिल को है ।
मोर
पंख सा ये दिखता जो है ,
मेरे मन को इतना तडपता क्यों है
रंगों को अपने बिखेर बिखेर
तुम्हारी याद दिलाता क्यों है ।
हवा के साथ उड़ जाता क्यों है
फिर कुछ दूर पर रुक जाता क्यों है
मन दौड़ के उसको उठाता क्यों है
समेटे करीब मुस्कुराता क्यों है ।
कितने
पल और काटूँ अब मैं
यादों में तेरी कितना जागूँ अब मैं
तुम्हारी ये अमानत अब भारी बोहोत
देनी है वापस , सहेजी बोहोत ।
बस
इस लिए बेचैनी सी है
कुछ ख़ास नही , मामूली सी है
मोर पंख ये अपना लेलो अब तुम
चैन वोह मेरा देदो अब तुम।
पर बात ये ज़रूरी और पक्की सी है
की मुझको नही मेरी आँखों को है
मुझको नही मेरी साँसों को है
इंतज़ार तुम्हारा हर पल का ये
मुझको नही मेरे दिल को है ।

Tuesday, February 3, 2009

मुझे आज़ाद करो

मैंने यह फोटो खीची और मुझे बोहोत पसंद आई। यह सूरज जो पेड़ की टहनियों के बीच में से झाँक सा रहा है , इसकी तरफ़ से यह कविता है।
मैं कैद में हूँ इसकी
मुझे तुम आज़ाद करो
मैं खुली हवा का आदि हूँ
मुझे आज़ाद करो ।
जला कर राख कर दूंगा तुमको
मुझसे न मज़ाक करो
मेरे आने से रौशन जहाँ होता
मुझे आज़ाद करो ।
मेरा वक़्त कीमती बोहोत
इसे ना जाया करो
इंतज़ार में मेरे कितने मुल्क
मुझे आज़ाद करो ।

रात को दिन मैंने किया
मुझे न गुमराह करो
जिंदगी प्यारी है अगर तुमको
मुझे आज़ाद करो ।

Thursday, January 29, 2009

क्या हम क्या तुम

मेरे दोस्त हजारों की गिनती में थे
मेरे शौक रहीसों के शौकों में थे
अरमान आसमान को छूते से थे
रुतबे गुरूर में चूर यूं थे।
शोहरत से प्यार ऐसा हुआ
होश तो जैसे खो ही दिया
ख्वाहिशों ने मुझको घेर यूं लिया
उनका गुलाम मैं बनता गया।
हाथों से वक़्त फिसलता गया
मेरी आंखों पे परदा सा पड़ता गया
मैं बाज़ी पे बाज़ी तो जीतता गया
पर ख़ुद से जुदा हो कर रह गया।
अब था वक़्त बोहोत पास मेरे
ख़ुद से मुलाक़ात के अरमान थे मेरे
मेरे ख़ुद ने मुझे कुछ भुला यूं दिया
मेरे वक़्त ने मुझे अब वक़्त न दिया
नाम भी गुम , काम भी गुम
पैसा भी गुम, वो दोस्त भी गुम
धोखा है सब , मत करो गुमान
है माटी सब माटी , क्या हम ..क्या तुम।

Tuesday, January 6, 2009

कमबख्त मुझे तू जीने दे ।


ऐ दिल तू अब बस भी कर
ख्वाहिश को अपनी ख़त्म कर
ना चाह को तू अब बढ़ने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे
खुशी की सरहद दूर बोहोत
ग़मों का सागर गहरा बोहोत
ना सोच तू अब , बस रहने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।

ये भी लेले , वो भी पाले ,
बस मांगे मांगे जाता है
सबर के बाँध को अब कस दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।

Friday, January 2, 2009

चलो फिर एक साल और बीता


आंखों में नमी
लबो पे मुस्कान
खुश हों या मायूस
अजब है दास्तान ।
एक और रात आई
एक और दिन बीता
झूमते हो खुशी में
चलो फिर एक साल और बीता

करीब मंजिल के आगये हो
वक़्त जीकर भी गवां गए हो
काफ़ी है खोया कुछ तोह है जीता
चलो फिर एक साल और बीता

क्या है नया क्या पुराना
गौर फरमाकर मैंने ये देखा
वही है राम वही तो है सीता
चलो फिर एक साल और बीता ।
आगया मैं करीब खुदा और तेरे
जिंदगी ढलने को है , वक़्त कम अब पास मेरे
जाम पे जाम फिर भी मैं पीता
चलो फिर एक साल और बीता