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Monday, December 29, 2008

जिसकी हम सब रचना है - राशि चतुर्वेदी



राहें अनजान हो ,
मंझर सुनसान हो ,
खौफ के पसीने से
कुछ सहमे और परेशान हो ।

जब टूटे सब ख्वाब हो
अपने नाराज़ हो
हमदम ना पास हो
तन्हाई का साथ हो ।

सोच लेना उस पल तुम
जिसने तुम्हे बनाया है
जिसकी तुम रचना हो
जिसने ये जहाँ बसाया है ।

दिखता नही आँखों से वो
मज़बूत बहुत वो साया है
आता नही सामने मगर
तुम्हारे अन्दर घर बसाया है ।

साँसों को साँस बनाया है
आँखों को जहाँ दिखाया है
दिल में एहसास को समाया है
इंसान को इंसान बनाया है
मांगो उसे जो चाहे तुम ,
बस देता ही देता आया है ।

मौसम बदल जाते है
अपने पलट जाते है
वक़्त को पकड़ पाया है कौन
चेहरे के रंग बदल जाते है ।

समझ सके तू समझ ले आज
बस एक ही वोह अजूबा है
जिसको तुमने पूजा है
जिसकी हमसब रचना हैं
जिसने हमें बनाया है ।

जिस्म तोह एक जरिया है
मकसद उस तक पोहोंचना है
ज़रिये से कर प्यार तू मत
आगे तुझे तोह बढ़ना है ।

महिमा का एक जाल है ये ,
चीर के इसे निकलना है ।
उसमे जाकर मिलना है
जिसने तुझे बनाया है
जिसकी हम सब रचना है ,
जिसने ये जहाँ बसाया है ।
जिसकी हम सब रचना है ,
जिसने ये जहाँ बसाया है ।