
मंझर सुनसान हो ,
खौफ के पसीने से
कुछ सहमे और परेशान हो ।
जब टूटे सब ख्वाब हो
अपने नाराज़ हो
हमदम ना पास हो
तन्हाई का साथ हो ।सोच लेना उस पल तुम
जिसने तुम्हे बनाया है
जिसकी तुम रचना हो
जिसने ये जहाँ बसाया है ।
दिखता नही आँखों से वो
मज़बूत बहुत वो साया है
आता नही सामने मगर
तुम्हारे अन्दर घर बसाया है ।
साँसों को साँस बनाया है
आँखों को जहाँ दिखाया है
दिल में एहसास को समाया है
इंसान को इंसान बनाया है
मांगो उसे जो चाहे तुम ,
बस देता ही देता आया है ।
मौसम बदल जाते है
अपने पलट जाते है
वक़्त को पकड़ पाया है कौन
चेहरे के रंग बदल जाते है ।
समझ सके तू समझ ले आज
बस एक ही वोह अजूबा है
जिसको तुमने पूजा है
जिसकी हमसब रचना हैं
जिसने हमें बनाया है ।
जिस्म तोह एक जरिया है
मकसद उस तक पोहोंचना है
ज़रिये से कर प्यार तू मत
आगे तुझे तोह बढ़ना है ।महिमा का एक जाल है ये ,
चीर के इसे निकलना है ।
उसमे जाकर मिलना है
जिसने तुझे बनाया है
जिसकी हम सब रचना है ,
जिसने ये जहाँ बसाया है ।
जिसकी हम सब रचना है ,
जिसने ये जहाँ बसाया है ।