बेटी - क्यों ऐसा मेरे साथ कियाचुप चुप सब मैं सुनती थी
माँ के पेट के भीतर से
दादी हरदम क्यों कहती थी ?
‘बेटा ’ दे अब ‘बेटा ’ दे ।
बहन मेरी प्यारी सी
'छोटी बहन दो माँ ' , ये कहती थी
माँ जोर का चांटा जड़ती थी
फिर रो रो कर ये कहती थी
‘मांग तू एक भाई अब
बेटी का जीवन कठिन बहुत । '
दादी भी बेटा मांगे , बापू भी बेटा मांगे
माँ भी मेरी हरदम ही भगवन से बेटा मांगे ।
फिर भी मैंने सोच लिया ,
सब का मन मैं हर लूंगी
अपनी नटखट बातों से
सबको खुश मैं कर दूंगी ।
पर मुझको इतना वक़्त न दिया
मेरे बापू ने ऐसा पाप किया
कर मालूम मैं लड़की थी
मुझको पेट में ही मार दिया ।
फूलों की खुशबू ले न सकी
जीवन का स्वाद मैं चख न सकी
माँ को माँ मैं कह न सकी
बहन से अपनी मिल न सकी
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
जीवन का सुंदर ख्वाब दिया
फिर मौत की आग में झोंक दिया
बेटी बन मैंने क्या कोई पाप किया ?
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
माँ के पेट के भीतर से
दादी हरदम क्यों कहती थी ?
‘बेटा ’ दे अब ‘बेटा ’ दे ।
बहन मेरी प्यारी सी
'छोटी बहन दो माँ ' , ये कहती थी
माँ जोर का चांटा जड़ती थी
फिर रो रो कर ये कहती थी
‘मांग तू एक भाई अब
बेटी का जीवन कठिन बहुत । '
दादी भी बेटा मांगे , बापू भी बेटा मांगे
माँ भी मेरी हरदम ही भगवन से बेटा मांगे ।
फिर भी मैंने सोच लिया ,
सब का मन मैं हर लूंगी
अपनी नटखट बातों से
सबको खुश मैं कर दूंगी ।
पर मुझको इतना वक़्त न दिया
मेरे बापू ने ऐसा पाप किया
कर मालूम मैं लड़की थी
मुझको पेट में ही मार दिया ।
फूलों की खुशबू ले न सकी
जीवन का स्वाद मैं चख न सकी
माँ को माँ मैं कह न सकी
बहन से अपनी मिल न सकी
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
जीवन का सुंदर ख्वाब दिया
फिर मौत की आग में झोंक दिया
बेटी बन मैंने क्या कोई पाप किया ?
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
मार्मिक प्रस्तुति..बहुत उम्दा.
ReplyDeleteमन मोहने वाली कृति!
ReplyDeleteअजन्मी बेटीयो की ओर से आवाज उठाने के लिये आभार------
ReplyDeleteकाश ये वो समाज के ठेकेदार , दहेज़ लोभी , बेटी को मरने वाले और बहू की कामना करने वाले भी पढ़ सकते ......बहुत अच्छा लिखा है ....सच्चाई तो सिर्फ सच्चाई होती है
ReplyDeleteहिन्दी भाषा के विकास में अपना योगदान दें।
ReplyDeleteरचनात्मक ब्लाग शब्दकार को रचना प्रेषित कर सहयोग करें।
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
बेटी - क्यों ऐसा मेरे साथ कियाचुप चुप सब मैं सुनती थी
ReplyDeleteमाँ के पेट के भीतर से
दादी हरदम क्यों कहती थी ?
‘बेटा ’ दे अब ‘बेटा ’ दे ।
बहन मेरी प्यारी सी
'छोटी बहन दो माँ ' , ये कहती थी
माँ जोर का चांटा जड़ती थी
फिर रो रो कर ये कहती थी
‘मांग तू एक भाई अब
बेटी का जीवन कठिन बहुत । '
दादी भी बेटा मांगे , बापू भी बेटा मांगे
माँ भी मेरी हरदम ही भगवन से बेटा मांगे ।
फिर भी मैंने सोच लिया ,
सब का मन मैं हर लूंगी
अपनी नटखट बातों से
सबको खुश मैं कर दूंगी ।
पर मुझको इतना वक़्त न दिया
मेरे बापू ने ऐसा पाप किया
कर मालूम मैं लड़की थी
मुझको पेट में ही मार दिया ।
फूलों की खुशबू ले न सकी
जीवन का स्वाद मैं चख न सकी
माँ को माँ मैं कह न सकी
बहन से अपनी मिल न सकी
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
जीवन का सुंदर ख्वाब दिया
फिर मौत की आग में झोंक दिया
बेटी बन मैंने क्या कोई पाप किया ?
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
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KRIPYA ISKO ANYATHA NA LIJIYEGA.
KYA AAPKA BLOG VAKAI SURAKSHIT HAI?
check your LOCK YOUR BLOG
Samvedansheel prastuti
ReplyDelete... प्रसंशनीय ... प्रसंशनीय ... प्रसंशनीय !!!
ReplyDeleteसीधे दिल पे दस्तक देती है आपकी के कविता
ReplyDeletedil men samaa gayi aapki kavitaa meri do-do betiyon kee tarah.......sach...........!!
ReplyDeleteSuperb! Very touching...I like the feelings behind it...
ReplyDeleteMegha
Art on Sketchbook
rashi ji hakikat me bahut sundar kavita hai . aik marmik dard ko bayan kar rahi hai. agar ho sake to aik mere blog par aayen.
ReplyDeleteraashi ji bahut hi marmik rachna hai bhroon hatya par jaandaar prastuti shubh kaamnaayeM
ReplyDeletepaida hone se pahle kisi ko mar dene par kendrit jo rachna aapne likhi hai us k lie badhai sweekare.bahut khubsurat likha hai aapne.jitni tareef ki jaye kam hai. kabhi mere blog par bhi aayen.
ReplyDeletewww.salaamzindadili.blogspot.com
marmik bhavabhivyakti.
ReplyDeleteRaashi ji
ReplyDeleteBahut achha likha hai apne.....
koi sabad nahi hai mere pass jo ki in lines ka abhar parkat kar sake
God bless you!
bahut hi dil ko choo jane wali lines likhi hai.
ReplyDeleteBeti , beta saman hum kehte hain par, hamara dil kuchh aur hi kehta hai. Beti , Beta ke naam se jo ladte hain kabhi unse pucho jinke koi aulad nahi hai, weh to beti ko paane ke liye bhi bahut jatan karte hain. is kavita ko sunday wale din newspaper mein bade akshar mein jarur chapwayein.
aap ne bahut hi aach likha hai
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