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Wednesday, January 16, 2019


Hello everyone.   I had visited Lucknow zoo recently ... actually revisited childhood memories.  Sharing my poem on the same.  Hope you all like it.



हमने ज़ू में क्या क्या देखा

खड़ा था वहीं वो गेट बड़ा सा ,
बगल में छोटी सी वो खिड़की ,
जहाँ से मिलता था टिकट मस्ती का !

वहीं लंबी सी कतार में ,
खड़े होते थे हम बेसबरे से ,
उंगली मम्मी की जकड़े पकड़े
मैं और मेरा छोटा भाई
अब आई अब आई हमारी बारी आई !

स्कूल से ज़ू की पिक्निक की मौज,
.बस में गाने गाती हुई हम लड़कियों की फौज ,
मन में लग गया था अब यादों का डेरा ,
क्या बतायें हमनें ज़ू में क्या क्या देखा !

जंगल का राजा दहाड़ रहा था ,
लोगों का मजमा लगा पड़ा था ,
पर मेरी आँखें ढूँडनें लगीं कुछ ख़ास,
पानी की प्लास्टिक की बोतल कुछ लाल ,
जो खो गयी थी पहले कई साल
रह गयी थी यहीं कहीं
शायद मिल जाय कहीं पड़ी !

इसी तलाश में नज़रों को किस किस कोने ना फैंका ,
अब क्या बतायें हमने ज़ू में क्या क्या देखा !

मन में घुलीमिली सी बचपन की यादें ,
सहेलियों से कभी भी ना ख़त्म .होने वाली बातें ,
अरे ! ये चबूतरा भी है वही ,
बितायें हैं हमने घंटे यहाँ कई ,
घूम घूम के हम थक जाते थे जब ,
बिछी चादर पर बैठ के यहाँ आलू पूरी खाते थे तब !


सज़ा पड़ा था ज़ू , लगा पड़ा था यादों का मेला
मीठी मखमली यादों को समेटते बटोरते कटा वो दिन अलबेला
अब क्या बतायें हमनें ज़ू में क्या क्या देखा
और, क्या क्या ना देखा !

राशि


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