ऐ दिल तू अब बस भी कर
ख्वाहिश को अपनी ख़त्म कर
ना चाह को तू अब बढ़ने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।
ख्वाहिश को अपनी ख़त्म कर
ना चाह को तू अब बढ़ने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।
खुशी की सरहद दूर बोहोत
ग़मों का सागर गहरा बोहोत
ना सोच तू अब , बस रहने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।
ये भी लेले , वो भी पाले ,
बस मांगे मांगे जाता है
सबर के बाँध को अब कस दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।
Bahut khub..आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
ReplyDeleteआपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
ReplyDeletesunder likhaa hai saadhuvaad
ReplyDeletebahut khoob likha hai rashi aapne
ReplyDeletevakiye dil khol ke rakh diya hai aapne
regards
Manuj Mehta
bahut hi sunder likha hai...
ReplyDelete"ये भी लेले , वो भी पाले ,
बस मांगे मांगे जाता है
सबर के बाँध को अब कस दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।"
dil to hai hi aakhir naadaan...
bachho ki tarah ziddi hota h. :)
SUNDER HAI.
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