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Thursday, February 12, 2009

रूह से जान पहचान

मौत से इतनी नफरत न होती , गर जो ये आने वाली न होती
पर ज़िन्दगी क्या इतनी खूबसूरत होती, गर जो ये जाने वाली न होती।
ज़िन्दगी को नाम ज़िन्दगी बनाया है मौत नें
गर मौत ही न होती, तो जिंदगी क्या खाक ज़िन्दगी होती।
ख़त्म हो जाने की मन्नत तू करता ,
गर उमर इतनी लम्बी जो होती
मौत चंद किस्मत वालों को मिलती,
और ज़मीन पे ज़िन्दगी की कदर न होती।
मौत ने जान डाली है इसमे,
गर ये ना आती , तो वो इतनी हसीन न होती।
मौत तो है जिस्म ख़त्म करती, रूह तेरी यहीं पर होती
गर जिस्म ही ख़त्म होते , तो ये ज़मीन छोटी पड़ रही होती
जिस्म तो हर पल है मर रहा, जान तो रूह में हमेशा है होती,
काम ले जिस्म से , पर दोस्ती तो रूह से है होती
सोचेगा तब जब देर हो चुकी होगी
के काश मेरी रूह से मेरी जान पहचान होती

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर कविता .. शब्दों का अहसास मन में गूंजता हुआ ..

    बधाई

    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  2. These are highly rare but essential thoughts for living. I simply loved it.
    Thank YOU!

    Congratulations!

    Om

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