मन का घोड़ा तेज़ बोहोत
बिन सोचे ही उड़ जाता है
लहर लहर लहराता है
हो मस्त ख़ुद पे इतराता है ।
बचो इससे , है नासमझ बोहोत
दौड़ दौड़ रुक जाता है
नशेडी से कदम बढाता है
मनो नृत्य कोई दिखलाता है ।
मन के घोडे की एक लगाम
ज़ोर से अब तुम लो थाम
काबू में गर रखना हो इसे
ढील देने में लो दिमाग से काम ।
rashiji aapki baat jaroor manenge achhi rachna hai
ReplyDeleteराशी जी, रचना के बहुत अच्छे भाव हैं।बधाई।
ReplyDeleteखयालो को ओर तरतीब से बांधिए ......
ReplyDeleterashi ji hamesha ki tarah lajawab hain is bar bhi aap. khaustaur par aakhri stanza. badhai
ReplyDeleteलहर लहर लहराता है ....वाह
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