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Tuesday, February 3, 2009

मुझे आज़ाद करो

मैंने यह फोटो खीची और मुझे बोहोत पसंद आई। यह सूरज जो पेड़ की टहनियों के बीच में से झाँक सा रहा है , इसकी तरफ़ से यह कविता है।
मैं कैद में हूँ इसकी
मुझे तुम आज़ाद करो
मैं खुली हवा का आदि हूँ
मुझे आज़ाद करो ।
जला कर राख कर दूंगा तुमको
मुझसे न मज़ाक करो
मेरे आने से रौशन जहाँ होता
मुझे आज़ाद करो ।
मेरा वक़्त कीमती बोहोत
इसे ना जाया करो
इंतज़ार में मेरे कितने मुल्क
मुझे आज़ाद करो ।

रात को दिन मैंने किया
मुझे न गुमराह करो
जिंदगी प्यारी है अगर तुमको
मुझे आज़ाद करो ।

3 comments:

  1. बहुत सुंदर चित्र है.
    कैद में सूरज कैसे सितारे सा दिखता है
    आज़ादी के बिना कैसे मुरझाया सा दीखता है

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  2. रात को दिन मैंने किया
    मुझे न गुमराह करो
    जिंदगी प्यारी है अगर तुमको
    मुझे आज़ाद करो ।

    बहुत ही सुलझा हुआ .....सही पहचान सूरज की...खूबसूरत....

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  3. सुन्दर भावात्मक अभिव्यक्ति

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