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Wednesday, May 14, 2008

एक साथ तुम्हारा पाने को



मैं छोड़ के सारे बन्धन को,
और तोड़ के सारी कसमों को,
दिल हाथ में लेकर आई थी ,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


ना ये देखा , ना वो सोचा,
ना इसकी सुनी, ना उससे कहा,
मैं सब कुछ भूल के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


बाबुल की पुकार है कानों में,
मेरी माँ की आंहे साँसों में,
सब रिश्ते तोड़ के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


मैं भी आंखों का तारा थी,
चहकती और खिलखिलाती सी,
नन्ही कली थी आँगन की,
जड़ों को ज़ख्मी छोड़ के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


तुम छोड़ ना देना साथ मेरा,
हाथ में हो बस हाथ तेरा,
अब दुआ यही दिन रात करूँ,
साथ जियूँ और साथ मरूँ।

मर के फिर जी जाउंगी,
एक साथ तुम्हारा पाने को,
हर जनम मैं वापस आउंगी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।

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