मैं छोड़ के सारे बन्धन को,
और तोड़ के सारी कसमों को,
दिल हाथ में लेकर आई थी ,
एक साथ तुम्हारा पाने को।
ना ये देखा , ना वो सोचा,
ना इसकी सुनी, ना उससे कहा,
मैं सब कुछ भूल के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।
बाबुल की पुकार है कानों में,
मेरी माँ की आंहे साँसों में,
सब रिश्ते तोड़ के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।
मैं भी आंखों का तारा थी,
चहकती और खिलखिलाती सी,
नन्ही कली थी आँगन की,
जड़ों को ज़ख्मी छोड़ के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।
तुम छोड़ ना देना साथ मेरा,
हाथ में हो बस हाथ तेरा,
अब दुआ यही दिन रात करूँ,
साथ जियूँ और साथ मरूँ।
मर के फिर जी जाउंगी,
एक साथ तुम्हारा पाने को,
हर जनम मैं वापस आउंगी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।
The picture at the top of this poem forced me to read this. I am assuming that too is your creation.
ReplyDeletewho is poet ?
ReplyDeletewho is poet ?
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