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Wednesday, January 16, 2019


Hello everyone.   I had visited Lucknow zoo recently ... actually revisited childhood memories.  Sharing my poem on the same.  Hope you all like it.



हमने ज़ू में क्या क्या देखा

खड़ा था वहीं वो गेट बड़ा सा ,
बगल में छोटी सी वो खिड़की ,
जहाँ से मिलता था टिकट मस्ती का !

वहीं लंबी सी कतार में ,
खड़े होते थे हम बेसबरे से ,
उंगली मम्मी की जकड़े पकड़े
मैं और मेरा छोटा भाई
अब आई अब आई हमारी बारी आई !

स्कूल से ज़ू की पिक्निक की मौज,
.बस में गाने गाती हुई हम लड़कियों की फौज ,
मन में लग गया था अब यादों का डेरा ,
क्या बतायें हमनें ज़ू में क्या क्या देखा !

जंगल का राजा दहाड़ रहा था ,
लोगों का मजमा लगा पड़ा था ,
पर मेरी आँखें ढूँडनें लगीं कुछ ख़ास,
पानी की प्लास्टिक की बोतल कुछ लाल ,
जो खो गयी थी पहले कई साल
रह गयी थी यहीं कहीं
शायद मिल जाय कहीं पड़ी !

इसी तलाश में नज़रों को किस किस कोने ना फैंका ,
अब क्या बतायें हमने ज़ू में क्या क्या देखा !

मन में घुलीमिली सी बचपन की यादें ,
सहेलियों से कभी भी ना ख़त्म .होने वाली बातें ,
अरे ! ये चबूतरा भी है वही ,
बितायें हैं हमने घंटे यहाँ कई ,
घूम घूम के हम थक जाते थे जब ,
बिछी चादर पर बैठ के यहाँ आलू पूरी खाते थे तब !


सज़ा पड़ा था ज़ू , लगा पड़ा था यादों का मेला
मीठी मखमली यादों को समेटते बटोरते कटा वो दिन अलबेला
अब क्या बतायें हमनें ज़ू में क्या क्या देखा
और, क्या क्या ना देखा !

राशि


Monday, March 2, 2009

बेटी - क्यों ऐसा मेरे साथ किया

बेटी - क्यों ऐसा मेरे साथ किया
चुप चुप सब मैं सुनती थी
माँ के पेट के भीतर से
दादी हरदम क्यों कहती थी ?
‘बेटा ’ दे अब ‘बेटा ’ दे ।
बहन मेरी प्यारी सी
'छोटी बहन दो माँ ' , ये कहती थी
माँ जोर का चांटा जड़ती थी
फिर रो रो कर ये कहती थी
‘मांग तू एक भाई अब
बेटी का जीवन कठिन बहुत । '
दादी भी बेटा मांगे , बापू भी बेटा मांगे
माँ भी मेरी हरदम ही भगवन से बेटा मांगे ।
फिर भी मैंने सोच लिया ,
सब का मन मैं हर लूंगी
अपनी नटखट बातों से
सबको खुश मैं कर दूंगी ।
पर मुझको इतना वक़्त न दिया
मेरे बापू ने ऐसा पाप किया
कर मालूम मैं लड़की थी
मुझको पेट में ही मार दिया ।
फूलों की खुशबू ले न सकी
जीवन का स्वाद मैं चख न सकी
माँ को माँ मैं कह न सकी
बहन से अपनी मिल न सकी
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?
जीवन का सुंदर ख्वाब दिया
फिर मौत की आग में झोंक दिया
बेटी बन मैंने क्या कोई पाप किया ?
क्यों ऐसा मेरे साथ किया ?

Friday, February 27, 2009

झुमका

झुमका


मेरी संगनी मुझसे है जुदा जुदा

चेहरे के एक ओर है वो , दूसरी ओर हूँ मैं लटका

एक झलक भी उसकी देख पाऊ मैं
बहुत हूँ बेचैन … बहुत हूँ तड़पा

सखियों ने छू छू कर देखा तुझे

कितनी है सुंदर ये झुमकी , बोला तुझे

तूफान मेरे अन्दर था उठा

एक झलक मैं भी देखू तेरी , मन था मेरा

इन झुल्फों में उलझ कर अपने आप को मैं

ज़मीन पे ला गिराना चाहता हूँ

टूट ही जाऊँ चाहे गिरकर मैं

तेरी एक झलक पाना चाहता हूँ

मैं कामयाब हुआ गिरकर झलक पाने को तेरी

कितनी सुंदर तू लगती कानों में लटकी लटकी

पर मेरे गिरने का मोहतरमा को कुछ अहसास हुआ

तू झूलती हुई उसके कानों में
उसके साथ आगे निकलती गयी

और मेरी आत्मा ......

टूटी सी ज़मीन पर पड़ी रह गयी।
रोंदा कितने कदमों ने मुझको

अपनी चमक खोता मैं गया

तू कानों मैं सजी झूमती रही

मैं वहीँ पड़ा तुझे ...

दूर जाता देखता रह गया

Wednesday, February 25, 2009

सौदा

करे सौदा इस जहाँ का हम तुम
आसमान तुम्हारा , ज़मीन हमारी
फूल तुम्हारे , खुशबू हमारी
सितारे तुम्हारे , झिलमिलाहट हमारी
चाँद तुम्हारा , चांदनी हमारी
सूरज तुम्हारा , रौशनी हमारी
सागर तुम्हारा , लहरें हमारी
पंछी तुम्हारे , उड़ान हमारी
बादल तुम्हारे , गर्जन हमारी
खुशियाँ तुम्हारी , दुःख दर्द हमारे
सब कुछ तुम्हारा , तुम हमारे

Friday, February 20, 2009

मन का घोड़ा

मन का घोड़ा तेज़ बोहोत

बिन सोचे ही उड़ जाता है

लहर लहर लहराता है

हो मस्त ख़ुद पे इतराता है ।

बचो इससे , है नासमझ बोहोत

दौड़ दौड़ रुक जाता है

नशेडी से कदम बढाता है

मनो नृत्य कोई दिखलाता है ।


मन के घोडे की एक लगाम

ज़ोर से अब तुम लो थाम

काबू में गर रखना हो इसे

ढील देने में लो दिमाग से काम ।

Friday, February 13, 2009

पानी की ये बूँद

पानी की ये बूँद अगर
सागर से मिले तो अमर बने
अपना अस्तित्व पर खो बैठे ।
पत्ते पे अगर ये जा गिरे
सूरज की किरण से दमक उठे
पर कुछ पल में ही सूख मरे ।
पानी
की ये बूँद अब क्या करे
खो बैठे अपने अस्तित्व को ये
या पत्ते पर दमक कर मर मिटे ?
अमर
रही गुमराह सही , सागर में बेनाम सही
जीती तो रही पर आम सही , क्या ऐसा जीवन ही है सही ?
पत्ते
पे रही अकेली सही , हिम्मत की पोटली भारी रही
कुछ पल दमक कर मर वो गई , क्या ऐसा जीवन ही है सही ?
गर
हर बूंद ये सोच उठे , सागर से मिल हो अमर बनू
सागार तो भर भर जाएगा , पर इधर सूखा पड़ जाएगा ।
गर हर बूंद ये सोच उठे दमक दमक मैं चमक उठू
अकेले बैठ इस पत्ते पे , मैं रानी बन यूं राज करू
सागर खली हो जाएगा , पत्ता पेड़ समेत दूब जाएगा ।
कोई
तो दे इस बूँद को राह सही
जो ख़त्म हो इसके सवाल सभी
मैं तो कुछ भी न सूझा पायी
ख़ुद अबतक राह तलाश रही ।

Thursday, February 12, 2009

रूह से जान पहचान

मौत से इतनी नफरत न होती , गर जो ये आने वाली न होती
पर ज़िन्दगी क्या इतनी खूबसूरत होती, गर जो ये जाने वाली न होती।
ज़िन्दगी को नाम ज़िन्दगी बनाया है मौत नें
गर मौत ही न होती, तो जिंदगी क्या खाक ज़िन्दगी होती।
ख़त्म हो जाने की मन्नत तू करता ,
गर उमर इतनी लम्बी जो होती
मौत चंद किस्मत वालों को मिलती,
और ज़मीन पे ज़िन्दगी की कदर न होती।
मौत ने जान डाली है इसमे,
गर ये ना आती , तो वो इतनी हसीन न होती।
मौत तो है जिस्म ख़त्म करती, रूह तेरी यहीं पर होती
गर जिस्म ही ख़त्म होते , तो ये ज़मीन छोटी पड़ रही होती
जिस्म तो हर पल है मर रहा, जान तो रूह में हमेशा है होती,
काम ले जिस्म से , पर दोस्ती तो रूह से है होती
सोचेगा तब जब देर हो चुकी होगी
के काश मेरी रूह से मेरी जान पहचान होती

Wednesday, February 11, 2009

तेरी माया

खिचता हूँ ओर तेरे
किधर भी मैं चला जाऊं
तेरा जादू हर तरफ़ है फैला
ख़ुद को शिकार इसका मैं पायूँ ।

दी तो तुने जिन्दगी बड़ी खूब मुझको
गमों के सागर में हिचकोले मैं खाऊं ,
पर डूबे जब मझधार में नैय्या मेरी
तुझसे कर गुजारिश सलामत पार लग्वायूं ।

वक़्त बना ही फिसलने को है
रोकना तोह इसको बोहोत मैं चाहूँ
काफ़ी कबड्डी खेल ली वक़्त से मैंने
पर हरदम मैं हारता ही जाऊं ।

माया कैसी रच दी है ये तुमने
जिसकी गिरफ्त से ना मैं बच पायु
माटी से बनाया है तुमने मुझको
अब माटी में ही समाता मैं जाऊं ।

Sunday, February 8, 2009

आज़ाद गुलाम



खुले आसमान के नीचे हूँ मैं

अपनी मर्जी का मालिक हूँ मैं

दिल जो चाहे करता हूँ मैं

खुश हूँ की आज़ाद हूँ मैं।

सुबह से लेकर शाम तक

काम के बोझ से घायल हूँ मैं

वक़्त ने ऐसा दौडाया है मुझे

पर खुश हु मैं आज़ाद हूँ मैं ।

गर ये रिश्तों के बंधे धागे

और ये काम ज़िम्मेदारी के नाते

कितनो से किए ये कसमे ये वादे

कितने मुनाफे और कितने घाटे

ये सब अगर ज़ंजीर नहीं हैं

गुलाम बनाये बैठी नहीं हैं

हर ओर से मुझको जकडे नहीं हैं

तो सही है शायद आज़ाद हूँ मैं

खुश हूँ मैं आज़ाद हूँ मैं।

Wednesday, February 4, 2009

मोर पंख

राधा जी भगवान् श्री कृष्ण के मोर पंख को अपने पास रखती है। उसको देख देख कर भगवान् श्री कृष्ण को याद करती रहती है। यह राधा जी की कलाकृति मैंने कुछ समय पहले बनायी थी, लेकिन यह कविता आज ही मन में आई। यह राधा जी की तरफ़ से है।
मुझको नहीं , मेरी आँखों को है ,
मुझको नहीं , मेरी साँसों को है ,
इंतज़ार तुम्हारा ये हर पल का
मुझको नही मेरे दिल को है ।
मोर
पंख सा ये दिखता जो है ,
मेरे मन को इतना तडपता क्यों है
रंगों को अपने बिखेर बिखेर
तुम्हारी याद दिलाता क्यों है ।
हवा के साथ उड़ जाता क्यों है
फिर कुछ दूर पर रुक जाता क्यों है
मन दौड़ के उसको उठाता क्यों है
समेटे करीब मुस्कुराता क्यों है ।
कितने
पल और काटूँ अब मैं
यादों में तेरी कितना जागूँ अब मैं
तुम्हारी ये अमानत अब भारी बोहोत
देनी है वापस , सहेजी बोहोत ।
बस
इस लिए बेचैनी सी है
कुछ ख़ास नही , मामूली सी है
मोर पंख ये अपना लेलो अब तुम
चैन वोह मेरा देदो अब तुम।
पर बात ये ज़रूरी और पक्की सी है
की मुझको नही मेरी आँखों को है
मुझको नही मेरी साँसों को है
इंतज़ार तुम्हारा हर पल का ये
मुझको नही मेरे दिल को है ।

Tuesday, February 3, 2009

मुझे आज़ाद करो

मैंने यह फोटो खीची और मुझे बोहोत पसंद आई। यह सूरज जो पेड़ की टहनियों के बीच में से झाँक सा रहा है , इसकी तरफ़ से यह कविता है।
मैं कैद में हूँ इसकी
मुझे तुम आज़ाद करो
मैं खुली हवा का आदि हूँ
मुझे आज़ाद करो ।
जला कर राख कर दूंगा तुमको
मुझसे न मज़ाक करो
मेरे आने से रौशन जहाँ होता
मुझे आज़ाद करो ।
मेरा वक़्त कीमती बोहोत
इसे ना जाया करो
इंतज़ार में मेरे कितने मुल्क
मुझे आज़ाद करो ।

रात को दिन मैंने किया
मुझे न गुमराह करो
जिंदगी प्यारी है अगर तुमको
मुझे आज़ाद करो ।

Thursday, January 29, 2009

क्या हम क्या तुम

मेरे दोस्त हजारों की गिनती में थे
मेरे शौक रहीसों के शौकों में थे
अरमान आसमान को छूते से थे
रुतबे गुरूर में चूर यूं थे।
शोहरत से प्यार ऐसा हुआ
होश तो जैसे खो ही दिया
ख्वाहिशों ने मुझको घेर यूं लिया
उनका गुलाम मैं बनता गया।
हाथों से वक़्त फिसलता गया
मेरी आंखों पे परदा सा पड़ता गया
मैं बाज़ी पे बाज़ी तो जीतता गया
पर ख़ुद से जुदा हो कर रह गया।
अब था वक़्त बोहोत पास मेरे
ख़ुद से मुलाक़ात के अरमान थे मेरे
मेरे ख़ुद ने मुझे कुछ भुला यूं दिया
मेरे वक़्त ने मुझे अब वक़्त न दिया
नाम भी गुम , काम भी गुम
पैसा भी गुम, वो दोस्त भी गुम
धोखा है सब , मत करो गुमान
है माटी सब माटी , क्या हम ..क्या तुम।

Tuesday, January 6, 2009

कमबख्त मुझे तू जीने दे ।


ऐ दिल तू अब बस भी कर
ख्वाहिश को अपनी ख़त्म कर
ना चाह को तू अब बढ़ने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे
खुशी की सरहद दूर बोहोत
ग़मों का सागर गहरा बोहोत
ना सोच तू अब , बस रहने दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।

ये भी लेले , वो भी पाले ,
बस मांगे मांगे जाता है
सबर के बाँध को अब कस दे
कमबख्त मुझे तू जीने दे ।

Friday, January 2, 2009

चलो फिर एक साल और बीता


आंखों में नमी
लबो पे मुस्कान
खुश हों या मायूस
अजब है दास्तान ।
एक और रात आई
एक और दिन बीता
झूमते हो खुशी में
चलो फिर एक साल और बीता

करीब मंजिल के आगये हो
वक़्त जीकर भी गवां गए हो
काफ़ी है खोया कुछ तोह है जीता
चलो फिर एक साल और बीता

क्या है नया क्या पुराना
गौर फरमाकर मैंने ये देखा
वही है राम वही तो है सीता
चलो फिर एक साल और बीता ।
आगया मैं करीब खुदा और तेरे
जिंदगी ढलने को है , वक़्त कम अब पास मेरे
जाम पे जाम फिर भी मैं पीता
चलो फिर एक साल और बीता

Tuesday, December 30, 2008

दान से पुण्य के नाम पर



भगवान का नाम रटता जा ,
पाप पे पाप तू करता जा ,
मन्दिर की घंटी बजादे बस
फिर चैन से रात भर सोता जा ।

क्या हम अन्दर से चोर नही
भगवान् को धोखा देते है
दान से पुण्य के नाम पर
पापों को धोया करते है ।
बुजुर्ग
है क्या , उसकी इज्ज़त क्या
अरमान का कत्ल तो रोज़ करते है
चंद कागज़ के तुकरे ये क्या
इन्ही पे जिंदा रहते है ।
अफ़सोस नही दुःख दर्द है क्या
बिन बात पे रोया करते है
समझ नही जीवन है क्या
पर मरने से हम डरते है ।
गरीब है क्या उसकी भूख है क्या
इन सब से अनजान हम बनते है
रूह तो कबकी मार दी मगर
इंसान भी अधूरे लगते है ।
दान से पुण्य के नाम पर
पापों को धोया करते है ।

Monday, December 29, 2008

जिसकी हम सब रचना है - राशि चतुर्वेदी



राहें अनजान हो ,
मंझर सुनसान हो ,
खौफ के पसीने से
कुछ सहमे और परेशान हो ।

जब टूटे सब ख्वाब हो
अपने नाराज़ हो
हमदम ना पास हो
तन्हाई का साथ हो ।

सोच लेना उस पल तुम
जिसने तुम्हे बनाया है
जिसकी तुम रचना हो
जिसने ये जहाँ बसाया है ।

दिखता नही आँखों से वो
मज़बूत बहुत वो साया है
आता नही सामने मगर
तुम्हारे अन्दर घर बसाया है ।

साँसों को साँस बनाया है
आँखों को जहाँ दिखाया है
दिल में एहसास को समाया है
इंसान को इंसान बनाया है
मांगो उसे जो चाहे तुम ,
बस देता ही देता आया है ।

मौसम बदल जाते है
अपने पलट जाते है
वक़्त को पकड़ पाया है कौन
चेहरे के रंग बदल जाते है ।

समझ सके तू समझ ले आज
बस एक ही वोह अजूबा है
जिसको तुमने पूजा है
जिसकी हमसब रचना हैं
जिसने हमें बनाया है ।

जिस्म तोह एक जरिया है
मकसद उस तक पोहोंचना है
ज़रिये से कर प्यार तू मत
आगे तुझे तोह बढ़ना है ।

महिमा का एक जाल है ये ,
चीर के इसे निकलना है ।
उसमे जाकर मिलना है
जिसने तुझे बनाया है
जिसकी हम सब रचना है ,
जिसने ये जहाँ बसाया है ।
जिसकी हम सब रचना है ,
जिसने ये जहाँ बसाया है ।

Wednesday, December 24, 2008

तुम्हारे चले जाने का अंजाम


दिल के तार आज बेसाज़ क्यूँ है
पलक पे सजे ख्वाब तार तार क्यूँ है
क्या ये है तुम्हारे चले जाने का अंजाम,
आज से ये शख्स कुछ गुमनाम क्यूँ है।
आँखों
से आंसू गिरने को तैयार क्यूँ है,
लबों पे मायूसी का इश्तिहार क्यूँ है ,
क्या ये भी है तुम्हारे चले जाने का अंजाम,
उठते कदम रुकते रुकते से क्यूँ है।

ऐतबार का रुतबा चूर चूर क्यूँ है,
खुशियों को ओढे ये कफ़न क्यूँ है,
क्या ये भी है तुम्हारे चले जाने का अंजाम,
हर पल अब मौत का इंतज़ार क्यूँ है ।

Monday, December 22, 2008

WHEN I WAS FIVE

Those were the days when I was five
Holding my mom’s hand with a free mind.
Take me where ever ; I have full faith in you,
Not much do I know about this world,
You will teach me how to live life.


Those were the days when I was five.
Daddy is strong I am so small.
I love your car, jeans and your bike.
Take me again for a long long drive.
Those were the days when I was five.

O Lord oh God ; have mercy on your child
Now my life has become like a bee hive
My life has lost its charm , to live I strive.
I beg you to take me back into those golden days,
When I was a free bird, chirping all day,
When I was protected well by my parents shadow,
Take me right there, Oh Lord, when I was , only, five !!

Tuesday, December 9, 2008

उसी एक चाँद के नीचे



क्यों वक़्त ने ऐसा वक़्त है दिखाया,
कैसे जिए अकेले , अब तेरा ये साया,
हासिल थी हर खुशी , जिंदगी में मेरे,
खुश किस्मती से जबसे तुमको था पाया ।


हो आज नही तुम पास मगर,
लगता है अभी आ गये अगर,
खिल खिल दिल ये नाचेगा,
आसान लगेगी फिर ये डगर ।

दिल तोह अब भी तेरी मुहब्बत ही सींचे,
तू है कुछ कदम आगे, और मैं कुछ पीछे,
ढूँढ ही लूंगी तुझे एक दिन , ये वादा है मेरा,
है तो हम दोनों आख़िर , उसी , एक चाँद के नीचे।

Monday, August 4, 2008

My Wandering Soul

Here she goes,
She goes again,
Leaving me alone
She goes again.

She loves to travel
More than me.
She loves to explore
The World ,and even Me.
She tells me often
To Leave her alone
She is,
My close friend -
My Wandering Soul.

She asks for food
I cannot give
Peace and Love
Smile and Joy
She leave me alone
And goes for these
Wanerdig alone
In search of these.

Thursday, July 24, 2008

Who is She....

She was a stranger ... she came to me.
Held my hand and whispered ..’follow me’.
Obedient was I, kept on going
She was so angelic , I was mesmerised.
We were strolling in the universe
There came the end ..
She dropped me from there
I came floating down, almost was dead.
Why did she do this?
Fake was her smile and her kiss.
I touched a surface after a long time
Whats that light, oh its sun shine.
I landed on earth, with people all around.
With faces, feelings, actions and sound.
With tears in my eyes, with heart to cry
I wish i could go back, I wish to die.
Then I saw a beautiful ocean roaring with pride
I washed my face and threw myself on the tide.
Oh what a feeling.. how beautiful is this.
Then I saw the sky so blue
The breeze, the trees were all so true.
I am loving it ... the birds the flowers
The trees the animals the rivers the oceans
Thanks to the lady whose blessings were showered.
But who was she ? Who brought me here ?
Who made me see all the beauty so real ..
She came there again ... and whispered in my ear..
I am always there with you,
To look after you , to take care of you,
To love you forever, to bring happiness to you.
I am with you when ever you desire.
I am with you in shivers and fire.
I am your guardian, God has made me so..
I love love you so much, why, even myself, I wonder.
I wish to tell you dear ,
I am none other, I am your mother.

Wednesday, May 14, 2008

एक काम अभी भी बाकी है




सब ख्वाब तोअब पूरे हुए,
सब क़र्ज़ भी अब चुकते हुए,
ले चलो मुझे अब जहाँ भी तुम,
आज से हम तुम दोस्त हुए।


ऐ दोस्त मुझे कुछ याद आया,
तू चल आगे, मैं पीछे आया,
एक काम अभी भी बाकी है,
पूरा करके बस यूं आया।


काम वो अब पूरा हुआ,
चल दोस्त , मैं संग तेरे हुआ,
ना लौट के वापस देखूंगा,
मेरा तुझसे वादा ये हुआ।


पर शक्ल किसी की आंखो में,
घूमती है हर पल मेरे,
एक झलक मैं लेकर आता हूँ,
आखिरी बार मिल आता हूँ।


कह दो मेरे उस दोस्त से तुम,
क्यों मुझको लेने आया है,
जीवन अभी प्यारा मुझे,
क्यों मौत का साया लाया है।


मोह ना कर दुनिया से तू,
ये तो सब कुछ बस धोखा है,
सच है खड़ा सामने तेरे ,
जिसको तूने रोका है।


आ लग जा गले , चल संग मेरे,
फिर देख तमाशा ऊपर से ,
क्यों मरने से डरता है,
कितने बहाने करता है।

जिस पल सच को जान लिया,
सब कुछ ख़ुद त्यागेगा तू,
मौत तो राह अनंत की है,
मरकर ही तो जानेगा तू।।


एक साथ तुम्हारा पाने को



मैं छोड़ के सारे बन्धन को,
और तोड़ के सारी कसमों को,
दिल हाथ में लेकर आई थी ,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


ना ये देखा , ना वो सोचा,
ना इसकी सुनी, ना उससे कहा,
मैं सब कुछ भूल के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


बाबुल की पुकार है कानों में,
मेरी माँ की आंहे साँसों में,
सब रिश्ते तोड़ के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


मैं भी आंखों का तारा थी,
चहकती और खिलखिलाती सी,
नन्ही कली थी आँगन की,
जड़ों को ज़ख्मी छोड़ के आई थी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।


तुम छोड़ ना देना साथ मेरा,
हाथ में हो बस हाथ तेरा,
अब दुआ यही दिन रात करूँ,
साथ जियूँ और साथ मरूँ।

मर के फिर जी जाउंगी,
एक साथ तुम्हारा पाने को,
हर जनम मैं वापस आउंगी,
एक साथ तुम्हारा पाने को।

जिंदगी इम्तिहान लेती है


जिंदगी इम्तिहान लेती है,
खुशी के लम्हों में गम की परछाई छोड़ देती है,
जिंदगी इम्तिहान लेती है।


मिलन के बाद एक लम्बी जुदाई,
काटे ना कटे, ये मीलो तन्हाई,
पल पल दिल को एक एहसास देती है,
जिंदगी इम्तिहान लेती है।


वादे ना करो इतने ,
आस्मान में तारे है जितने,
हिम्मत जुटा लो तमाम,
के आंसू अभी बाकी है बेशुमार,
होसलों के तार तार छीन लेती है,
जिंदगी इम्तिहान लेती है।

Monday, May 12, 2008

वो काम अब भी अधूरा...

वक़्त के हाथो मजबूर था मै,

कुछ काम थे अधूरे

मसरूफ था मै ।

जिंदगी बीत गई मेरी

वक़्त हो चला पूरा ।

सवाल रह गए कितने

वो काम अब भी अधूरा।

I know it was You


Yes I know it was you
No matter how much you deny
Yes I know it was you
You bring back my smile whenever I cry.

You bring me out from dark to light
You give me sunshine warm and bright
Could not be mere coincidence each time
I know its you, and yes, I am right.

Reasons Unknown


Where is she
Who was in love with me ?
I need her now
In my life to be.

Where did she go,
Who took her away,
Is she fine , happy and gay ?

And that friend close
Also left me alone
Why me again, my flesh and bone ?

Puzzle of life still the same
Playing our roles in the game
Wish to die for name and fame
Reasons unknown; oh what a shame.

Could there be , a story untold
Could there be , a reason to unfold
I wish to know the unknown story
But not in dead and not in cold.